जीविका के संकोच रूप धर्म के बल से स्वर्ग आदि लोगों को प्राप्त कर सकता
2.
संकोच रूप से न मात्र हमारी सरहदों के अंदर, वरन् हमारे घरों के अंदर ही घुसते आ रहे हैं।
3.
जिसका भाव यह हैं कि ” वह जीविका के संकोच रूप धर्म के बल से स्वर्ग आदि लोगों को प्राप्त कर सकता हैं ” ।
4.
किन्तु यदि कभी अर्थशास्त्र के नियमों एवं धर्मशास्त्र के नियमों में विरोध उत्पन्न हो जाए तो नि: संकोच रूप से धर्मशास्त्र के नियमों को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।